कोई भी व्यक्ति, अपनी मेहनत की कमाई को टैक्स के पीछे बर्बाद करना नहीं चाहता है। लेकिन सोच-समझकर एक टैक्स सेविंग प्लान बनाने और अपनी देनदारी को सुव्यवस्थित तरीके से कम करने के बारे में बहुत कम लोग सोचते हैं। अपनी टैक्स देनदारी को कम करने के लिए, नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत से ही टैक्स प्लानिंग शुरू करना बहुत जरूरी है। तो आइए नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के साथ जल्दी से टैक्स प्लानिंग की शुरुआत करने के फायदों पर एक नजर डालते हैं।
जबकि टैक्स प्लानिंग, हर उम्र के लोगों के लिए जरूरी है, लेकिन सही निवेश साधन का चुनाव ही आपकी टैक्स प्लानिंग को एक असरदार टैक्स प्लानिंग बना सकता है। आपकी टैक्स प्लानिंग और निवेश प्लानिंग में एक अच्छा तालमेल होना चाहिए ताकि आपको अपने वित्तीय लक्ष्यों को आराम से पूरा करने में मदद मिल सके। इसलिए वित्तीय वर्ष के शुरू में ही अपने वित्तीय लक्ष्यों के अनुसार सही निवेश साधनों का चुनाव करना बहुत जरूरी है। यदि आप जल्दी से अपनी टैक्स प्लानिंग शुरू करते हैं तो आपको बाद में अपने विकल्पों पर दोबारा सोच-विचार करने और उनमें उसी हिसाब से जरूरी फेरबदल करने का समय मिलेगा। लेकिन, यदि आप वित्तीय वर्ष के अंतिम पड़ाव पर टैक्स प्लानिंग करते हैं तो आप सिर्फ टैक्स सेविंग के लिए साधनों का चुनाव कर सकते हैं और अच्छे निवेश रिटर्न पाने में असफल हो सकते हैं।
रिटर्न ज्यादा मिलेगा
जल्दी शुरुआत करने से आपको कम्पाउंडिंग की ताकत का लाभ उठाने का मौका मिलेगा। लेकिन, यदि आप निवेश करने में देर कर देते हैं तो आपको एक साल तक हर महीने नियमित रूप से निवेश करते समय मिलने वाले रिटर्न से हाथ धोना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, ईएलएसएस में एक सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) में आपको एक लम्प सम इन्वेस्टमेंट की तुलना में रुपी-कॉस्ट एवरेजिंग का लाभ दिलाने की बेहतर क्षमता होती है। इससे आपको वित्तीय वर्ष के अंत में एक बहुत बड़ी रकम निवेश करने से बचने में भी मदद मिलेगी। अपनी रिस्क प्रोफाइल के आधार पर, आपको अपने पोर्टफोलियो में इक्विटी और डेब्ट निवेश साधनों का एक अच्छा मिश्रण रखना चाहिए। यदि आप अपने करिअर की शुरुआत में हैं और रिस्क लेना नहीं चाहते हैं तो आप अच्छे रिटर्न के लिए मार्केट से जुड़े निवेश साधनों में निवेश कर सकते हैं। रिस्क विरोधी निवेशक, फिक्स्ड इनकम वाले निवेश साधनों का भी चुनाव कर सकते हैं। इसलिए अपने लक्ष्यों का आकलन करने के लिए और सोच-समझकर फैसला लेने के लिए अपने आपको पर्याप्त समय दें।
उम्र आधारित टैक्स प्लानिंग:
एक असरदार टैक्स प्लान बनाने के लिए, अपनी उम्र, इनकम और अपनी वर्तमान वित्तीय परिस्थिति में होने वाले अन्य बदलावों पर विचार करना जरूरी है। आइए जान लीजिए कि जिंदगी के अलग-अलग पड़ाव पर आपको अपने टैक्स की प्लानिंग कैसे करनी चाहिए:
20 की दशक में
यह आपकी उम्र का वह पड़ाव है जब आप नौजवान होते हैं और बस अभी-अभी कमाना शुरू ही किया होगा। जबकि टैक्स प्लानिंग आपके लिए बहुत जरूरी नहीं भी हो सकता है, लेकिन फिर भी जल्दी से शुरुआत करने से आपको अपने फाइनैंस पर अपना कंट्रोल रखने का मौका मिलेगा। इस पड़ाव पर, आप ईएलएसएस फंड्स जैसे रिस्की विकल्पों का चुनाव कर सकते हैं। ये लम्बे समय में ज्यादा रिटर्न देते हैं जिससे आपको सिर्फ महंगाई को मात देने में ही मदद नहीं मिलेगी बल्कि आपको सेक्शन 80C के तहत कटौती का लाभ भी मिलेगा। आप सुरक्षित विकल्पों, जैसे पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) में निवेश करने के बारे में भी सोच सकते हैं जो गारंटीशुदा रिटर्न और सेक्शन 80C के तहत टैक्स लाभ देते हैं। इस उम्र में टर्म इंश्योरेंस लेने से प्रीमियम कम लगेगा जो पॉलिसी की सम्पूर्ण अवधि तक फिक्स्ड रहेगा और आपको सेक्शन 80C के तहत टैक्स लाभ भी देगा।
30 की दशक में
उम्र के इस पड़ाव पर, हो सकता है कि आप अपने करिअर में सेटल हो गए हों, एक अच्छा इनकम कमा रहे हों और शायद अब तक आपका एक परिवार भी बन चुका हो। अपनी रिस्क उठाने की चाहत का आकलन करने के बाद, सेक्शन 80C के तहत कटौतियों का लाभ उठाने के लिए ईएलएसएस और यूएलआईपी (यूलिप) में निवेश करने के बारे में सोचें। एक होम लोन के माध्यम से अपना घर खरीदने से आपको अपना खुद का एक घर खरीदने का लक्ष्य पूरा करने में मदद मिलेगी जिसके साथ आपको अपने प्रिंसिपल राशि के रीपेमेंट के लिए सेक्शन 80C के तहत रु.1.5 लाख तक और ब्याज राशि के भुगतान के लिए सेक्शन 24B के तहत रु.2 लाख तक का टैक्स लाभ मिलता है। अपने परिवार की जरूरतों का आकलन करने के बाद, अपना इंश्योरेंस कवर बढ़ाएं और आवश्यक कटौतियों के लिए दावा करें। आप बढ़ते हेल्थकेयर खर्च से निपटने के लिए एक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ले सकते हैं और सेक्शन 80D के तहत कटौतियों के लिए दावा करने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। आप नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) में निवेश करके एक रिटायरमेंट फंड तैयार करने के बारे में भी सोच सकते हैं और सेक्शन 80C के तहत मिलने वाले टैक्स लाभ से ऊपर सेक्शन 80(CCD) के तहत रु.50,000 तक की अतिरिक्त कटौती के लिए दावा कर सकते हैं।
40 की दशक में
यह उम्र का वह पड़ाव है जहां आप अपने आपको किसी भी तरह के रिस्क में डाले बिना स्थिरता पाना चाहते होंगे। आप अपने फाइनैंस को एक जगह करने के बारे में सोच रहे होंगे। आप होम लोन, बच्चों की ट्यूशन फीस, इत्यादि जैसे अपने सामान्य खर्चों के लिए सेक्शन 80C के तहत टैक्स लाभ उठाना जारी रख सकते हैं। उन निवेशों में निवेशित रहना बुद्धिमानी का काम होगा जो कम रिस्की हैं लेकिन अच्छे रिटर्न देते हैं।
50 और 60 की दशक में
उम्र के इस पड़ाव पर, आपका ध्यान अपने रिस्क को कम करने और अपने निवेशों के माध्यम से मिलने वाले एक अच्छे खासे रिटर्न को सुरक्षित करने पर होना चाहिए। होम लोन, बच्चों के एजुकेशन लोन, लाइफ और इंश्योरेंस प्रीमियम, एनपीएस में निवेश इत्यादि के माध्यम से आप अपनी टैक्स सेविंग का ख्याल रख सकते हैं। यदि आपकी उम्र 60 साल से अधिक है तो आपको सीनियर सिटिज़न्स सेविंग्स स्कीम (SCSS) में निवेश करना चाहिए जिस पर आपको शानदार रिटर्न मिलने के साथ-साथ सेक्शन 80C के तहत टैक्स लाभ भी मिलता है। टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपोजिट्स और अन्य छोटे-मोटे सेविंग स्कीम्स भी इस पड़ाव पर निवेश करने के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।
एक कार्यकुशल टैक्स प्लानिंग का नियम यही है कि इसकी शुरुआत जल्दी से करनी चाहिए, इसलिए अप्रैल शुरू होते ही अपनी टैक्स प्लानिंग की प्रक्रिया को शुरू करना एक समझदार वित्तीय कदम होगा।
Tax planning is the analysis of a financial situation or plan from a tax perspective. The purpose of tax planning is to ensure tax efficiency. Through tax planning, all elements of the financial plan work together in the most tax-efficient manner possible. Tax planning is an essential part of a financial plan. Reduction of tax liability and maximizing the ability to contribute to retirement plans are crucial for success.
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