Monday, September 30, 2019

टैक्स प्लानिंग शुरू करने का सही समय क्या है?

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कोई भी व्यक्ति, अपनी मेहनत की कमाई को टैक्स के पीछे बर्बाद करना नहीं चाहता है। लेकिन सोच-समझकर एक टैक्स सेविंग प्लान बनाने और अपनी देनदारी को सुव्यवस्थित तरीके से कम करने के बारे में बहुत कम लोग सोचते हैं। अपनी टैक्स देनदारी को कम करने के लिए, नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत से ही टैक्स प्लानिंग शुरू करना बहुत जरूरी है। तो आइए नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के साथ जल्दी से टैक्स प्लानिंग की शुरुआत करने के फायदों पर एक नजर डालते हैं।

जबकि टैक्स प्लानिंग, हर उम्र के लोगों के लिए जरूरी है, लेकिन सही निवेश साधन का चुनाव ही आपकी टैक्स प्लानिंग को एक असरदार टैक्स प्लानिंग बना सकता है। आपकी टैक्स प्लानिंग और निवेश प्लानिंग में एक अच्छा तालमेल होना चाहिए ताकि आपको अपने वित्तीय लक्ष्यों को आराम से पूरा करने में मदद मिल सके। इसलिए वित्तीय वर्ष के शुरू में ही अपने वित्तीय लक्ष्यों के अनुसार सही निवेश साधनों का चुनाव करना बहुत जरूरी है। यदि आप जल्दी से अपनी टैक्स प्लानिंग शुरू करते हैं तो आपको बाद में अपने विकल्पों पर दोबारा सोच-विचार करने और उनमें उसी हिसाब से जरूरी फेरबदल करने का समय मिलेगा। लेकिन, यदि आप वित्तीय वर्ष के अंतिम पड़ाव पर टैक्स प्लानिंग करते हैं तो आप सिर्फ टैक्स सेविंग के लिए साधनों का चुनाव कर सकते हैं और अच्छे निवेश रिटर्न पाने में असफल हो सकते हैं।

रिटर्न ज्यादा मिलेगा
जल्दी शुरुआत करने से आपको कम्पाउंडिंग की ताकत का लाभ उठाने का मौका मिलेगा। लेकिन, यदि आप निवेश करने में देर कर देते हैं तो आपको एक साल तक हर महीने नियमित रूप से निवेश करते समय मिलने वाले रिटर्न से हाथ धोना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, ईएलएसएस में एक सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) में आपको एक लम्प सम इन्वेस्टमेंट की तुलना में रुपी-कॉस्ट एवरेजिंग का लाभ दिलाने की बेहतर क्षमता होती है। इससे आपको वित्तीय वर्ष के अंत में एक बहुत बड़ी रकम निवेश करने से बचने में भी मदद मिलेगी। अपनी रिस्क प्रोफाइल के आधार पर, आपको अपने पोर्टफोलियो में इक्विटी और डेब्ट निवेश साधनों का एक अच्छा मिश्रण रखना चाहिए। यदि आप अपने करिअर की शुरुआत में हैं और रिस्क लेना नहीं चाहते हैं तो आप अच्छे रिटर्न के लिए मार्केट से जुड़े निवेश साधनों में निवेश कर सकते हैं। रिस्क विरोधी निवेशक, फिक्स्ड इनकम वाले निवेश साधनों का भी चुनाव कर सकते हैं। इसलिए अपने लक्ष्यों का आकलन करने के लिए और सोच-समझकर फैसला लेने के लिए अपने आपको पर्याप्त समय दें।

उम्र आधारित टैक्स प्लानिंग:
एक असरदार टैक्स प्लान बनाने के लिए, अपनी उम्र, इनकम और अपनी वर्तमान वित्तीय परिस्थिति में होने वाले अन्य बदलावों पर विचार करना जरूरी है। आइए जान लीजिए कि जिंदगी के अलग-अलग पड़ाव पर आपको अपने टैक्स की प्लानिंग कैसे करनी चाहिए:

20 की दशक में
यह आपकी उम्र का वह पड़ाव है जब आप नौजवान होते हैं और बस अभी-अभी कमाना शुरू ही किया होगा। जबकि टैक्स प्लानिंग आपके लिए बहुत जरूरी नहीं भी हो सकता है, लेकिन फिर भी जल्दी से शुरुआत करने से आपको अपने फाइनैंस पर अपना कंट्रोल रखने का मौका मिलेगा। इस पड़ाव पर, आप ईएलएसएस फंड्स जैसे रिस्की विकल्पों का चुनाव कर सकते हैं। ये लम्बे समय में ज्यादा रिटर्न देते हैं जिससे आपको सिर्फ महंगाई को मात देने में ही मदद नहीं मिलेगी बल्कि आपको सेक्शन 80C के तहत कटौती का लाभ भी मिलेगा। आप सुरक्षित विकल्पों, जैसे पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) में निवेश करने के बारे में भी सोच सकते हैं जो गारंटीशुदा रिटर्न और सेक्शन 80C के तहत टैक्स लाभ देते हैं। इस उम्र में टर्म इंश्योरेंस लेने से प्रीमियम कम लगेगा जो पॉलिसी की सम्पूर्ण अवधि तक फिक्स्ड रहेगा और आपको सेक्शन 80C के तहत टैक्स लाभ भी देगा।

30 की दशक में
उम्र के इस पड़ाव पर, हो सकता है कि आप अपने करिअर में सेटल हो गए हों, एक अच्छा इनकम कमा रहे हों और शायद अब तक आपका एक परिवार भी बन चुका हो। अपनी रिस्क उठाने की चाहत का आकलन करने के बाद, सेक्शन 80C के तहत कटौतियों का लाभ उठाने के लिए ईएलएसएस और यूएलआईपी (यूलिप) में निवेश करने के बारे में सोचें। एक होम लोन के माध्यम से अपना घर खरीदने से आपको अपना खुद का एक घर खरीदने का लक्ष्य पूरा करने में मदद मिलेगी जिसके साथ आपको अपने प्रिंसिपल राशि के रीपेमेंट के लिए सेक्शन 80C के तहत रु.1.5 लाख तक और ब्याज राशि के भुगतान के लिए सेक्शन 24B के तहत रु.2 लाख तक का टैक्स लाभ मिलता है। अपने परिवार की जरूरतों का आकलन करने के बाद, अपना इंश्योरेंस कवर बढ़ाएं और आवश्यक कटौतियों के लिए दावा करें। आप बढ़ते हेल्थकेयर खर्च से निपटने के लिए एक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ले सकते हैं और सेक्शन 80D के तहत कटौतियों के लिए दावा करने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। आप नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) में निवेश करके एक रिटायरमेंट फंड तैयार करने के बारे में भी सोच सकते हैं और सेक्शन 80C के तहत मिलने वाले टैक्स लाभ से ऊपर सेक्शन 80(CCD) के तहत रु.50,000 तक की अतिरिक्त कटौती के लिए दावा कर सकते हैं।

40 की दशक में
यह उम्र का वह पड़ाव है जहां आप अपने आपको किसी भी तरह के रिस्क में डाले बिना स्थिरता पाना चाहते होंगे। आप अपने फाइनैंस को एक जगह करने के बारे में सोच रहे होंगे। आप होम लोन, बच्चों की ट्यूशन फीस, इत्यादि जैसे अपने सामान्य खर्चों के लिए सेक्शन 80C के तहत टैक्स लाभ उठाना जारी रख सकते हैं। उन निवेशों में निवेशित रहना बुद्धिमानी का काम होगा जो कम रिस्की हैं लेकिन अच्छे रिटर्न देते हैं।

50 और 60 की दशक में
उम्र के इस पड़ाव पर, आपका ध्यान अपने रिस्क को कम करने और अपने निवेशों के माध्यम से मिलने वाले एक अच्छे खासे रिटर्न को सुरक्षित करने पर होना चाहिए। होम लोन, बच्चों के एजुकेशन लोन, लाइफ और इंश्योरेंस प्रीमियम, एनपीएस में निवेश इत्यादि के माध्यम से आप अपनी टैक्स सेविंग का ख्याल रख सकते हैं। यदि आपकी उम्र 60 साल से अधिक है तो आपको सीनियर सिटिज़न्स सेविंग्स स्कीम (SCSS) में निवेश करना चाहिए जिस पर आपको शानदार रिटर्न मिलने के साथ-साथ सेक्शन 80C के तहत टैक्स लाभ भी मिलता है। टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपोजिट्स और अन्य छोटे-मोटे सेविंग स्कीम्स भी इस पड़ाव पर निवेश करने के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।

एक कार्यकुशल टैक्स प्लानिंग का नियम यही है कि इसकी शुरुआत जल्दी से करनी चाहिए, इसलिए अप्रैल शुरू होते ही अपनी टैक्स प्लानिंग की प्रक्रिया को शुरू करना एक समझदार वित्तीय कदम होगा।
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Tax planning is the analysis of a financial situation or plan from a tax perspective. The purpose of tax planning is to ensure tax efficiency. Through tax planning, all elements of the financial plan work together in the most tax-efficient manner possible. Tax planning is an essential part of a financial plan. Reduction of tax liability and maximizing the ability to contribute to retirement plans are crucial for success.

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Friday, September 27, 2019

खास मामलों में आईटीआर फाइल करने की डेट एक महीने बढ़ी

टैक्स ऑडिट करदाताओं के खातों की समीक्षा है. ऐसे करदाताओं में खुद का कारोबार करने वाले या पेशेवर सेवाएं देने वाले शामिल होते हैं.
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विशेष मामलों के लिए आईटीआर दाखिल करने की
 अंतिम तिथि पहले 30 सितंबर थी.
देश में कर मामलों की सर्वोच्च संस्था केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड यानी सीबीडीटी ने विशेष मामलों के लिए आईटीआर दाखिल करने की अंतिम तिथि एक महीने बढ़ाकर 31 अक्टूबर कर दी है, इससे पहले यह तिथि 30 सितंबर थी.

सीबीडीटी ने कहा, "देशभर से मिली प्रतिक्रियाओं को ध्यान में रखते हुए सीबीडीटी ने उन लोगों के लिए आईटीआर और ऑडिट रिपोर्ट्स दाखिल करने की अंतिम तिथि 30 सितंबर से बढ़ाकर 31 अक्टूबर कर दी है, जिनके अकाउंट का ऑडिट होना बाकी है.

सीबीडीटी ने कहा है कि इसके लिए औपचारिक अधिसूचना जल्द जारी कर दी जाएगी. यह आईटीआर वे लोग भर सकते हैं, जिनकी एसेसिंग आयकर अधिनियम के सेक्शन 44AB के तहत की जाती है, इनमें कंपनियां, पार्टनरशिप कंपनियां, प्रोपराइटरशिप शामिल हैं और उनके अकाउंट को फाइलिंग के पहले ऑडिट करने की जरूरत होती है...

क्यों होता है टैक्स ऑडिट? 

क्या आपका खुद का कारोबार है? या आप पेशेवर सेवाएं देते हैं? एक सीमा से ज्यादा कारोबार होने पर आपको अपने खातों का टैक्स ऑडिट कराना पड़ता है. ऑडिट इनकम टैक्स डिपार्टमेंट करता है. ऑडिट हर वित्तीय वर्ष यानी हर साल में एक बार तो किया ही जाता है. यह आपकी ओर से खुद भी हो सकता है और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की ओर से भी ऑडिट करने के लिए कभी भी पूछा जा सकता है. ऑडिट चार्टर्ड अकाउंटेंट की ओर से किया जाता है.

 क्या है टैक्स ऑडिट?

टैक्स ऑडिट करदाताओं के खातों की समीक्षा है. ऐसे करदाताओं में खुद का कारोबार करने वाले या पेशेवर सेवाएं देने वाले शामिल होते हैं. इन खातों की समीक्षा इनकम, डिडक्शन, कर कानूनों के अनुपालन इत्यादि के नजरिए से की जाती है.

किसे कराना होता है टैक्स ऑडिट?


जिन करदाताओं का टर्नओवर 1 करोड़ रुपये से ज्यादा है और प्रिजम्पटिव टैक्सेशन स्कीम का चयन नहीं किया है या जिनकी कुल व्यावसायिक आय 50 लाख रुपये से अधिक है, उन्हें टैक्स ऑडिट कराने की जरूरत होती है.

नहीं कराया टैक्स ऑडिट तब? 

बही-खातों का ऑडिट कराने में विफल रहने वाले करदाताओं को पेनाल्टी का भुगतान करना पड़ता है. यह पेनाल्टी टर्नओवर का 0.5 फीसदी होती है. लेकिन, डेढ़ लाख रुपये से ज्यादा नहीं हो सकती है. टैक्स ऑडिट रिपोर्ट को 30 सितंबर या उससे पहले दाखिल कर देना चाहिए. यह उन करदाताओं के मामले में अनिवार्य है जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेनदेन से जुड़ा सौदा नहीं किया है.
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Tuesday, September 24, 2019

दिवाली से पहले कंपनियों को निर्मला सीतारमण का तोहफा, टैक्स की दरें घटाईं

सरकार ने कंपनियों पर टैक्स की दर घटाकर 25.17 फीसदी करने का फैसला किया है
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए बड़ा एलान किया. शुक्रवार सुबह वित मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह एलान किया. उन्होंने कहा कि 1 अक्टूबर के बाद स्थापित होने वाली मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को 15 फीसदी टैक्स देना होगा. इस तरह नई मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों के लिए टैक्स की प्रभावी दर 17.01 फीसदी होगी. इस एलान से शेयर बाजार में रौनक लौट आई है. सेंसेक्स में करीब 1700 अंक का उछाल देखने को मिला है.

इनकम टैक्स एक्ट में नया प्रावधान शामिल
सरकार ने इनकम टैक्स एक्ट में नया प्रावधान जोड़ा है. इसके तहत वित्त वर्ष 2019-20 से घरेलू कंपनियों पर इनकम टैक्स की दर 22 फीसदी होगी. शर्त यह है कि ऐसी कंपनी को दूसरी कोई टैक्स छूट नहीं मिल रही हो. सरचार्ज और सेस मिलाकर टैक्स की प्रभावी दर 25.17 फीसदी होगी.

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Friday, September 13, 2019

इनकम टैक्‍स भुगतान के वक्त हुई गलती को कैसे सुधारें?

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टैक्स ऑनलाइन जमा करने पर गलती को केवल आपके एसेसिंग
ऑफिसर (AO) सुधार सकते हैं.
इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करते समय अगर कोई टैक्स बकाया है तो आईटीआर फाइलिंग की प्रक्रिया से पहले इसे चुकाना पड़ता है. इनकम टैक्स जमा करने में भूल हो जाने पर ऐसे डिपॉजिट किए गए टैक्स की रकम फॉर्म 26 एएस में नहीं दिखती है. इस तरह आप इसके लिए टैक्स क्रेडिट क्लेम नहीं कर पाएंगे. ऐसा हो सकता है क‍ि साल के दौरान सेल्फ-एसेसमेंट टैक्स या एडवांस टैक्स जमा करने के दौरान आपने गलत एसेसमेंट ईयर चुन लिया हो. या फिर जहां टैक्स चुकाना है, वह कैटेगरी सही न हो. इसकी वजह से गड़बड़ी हो सकती है. अगर गलती हो गई है तो घबराने की जरूरत नहीं है. आप उसे सुधार सकते हैं. आइए, यहां जानते हैं कि इनकम टैक्स पेमेंट में गलती को आप कैसे सही कर सकते हैं.

अगर टैक्स ऑनलाइन जमा करते हैं
टैक्स ऑनलाइन जमा करने पर गलती को केवल आपके एसेसिंग ऑफिसर (AO) सुधार सकते हैं. आईटीआर फाइलिंग वेबसाइट टैक्स2विन डॉट कॉम के सीईओ अभिषेक सोनी कहते हैं, "आपको अपने एसेसिंग ऑफिसर के दफ्तर जाना पड़ेगा. उनसे गलती को सुधारने का अनुरोध करना पड़ेगा. एसेसिंग ऑफिसर के दफ्तर का पता ई-फाइलिंग वेबसाइट से लग जाएगा."

अपने एसेसिंग ऑफिसर का पता लगाने के लिए इन स्टेप को फॉलो करें:
Step 1: सबसे पहले www.incometaxindiaefiling.gov.in पर जाएं.

Step 2: होमपेज पर 'क्विक लिंक्स' टैब में 'नो योर टैन/एओ' में एओ पर क्लिक करें.
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Step 3: आपकी स्क्रीन पर नया पेज खुल जाएगा. अपना पैन और मोबाइल नंबर दर्ज करें.

इनकम टैक्‍स भुगतान के वक्त हुई गलती को कैसे सुधारें?
अगर गलती हो गई है तो घबराने की जरूरत नहीं है. आप उसे सुधार सकते हैं. आइए, यहां जानते हैं कि इनकम टैक्स पेमेंट में गलती को आप कैसे सही कर सकते हैं.
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Step 5: ओटीपी के सही दर्ज हो जाने पर आपकी स्क्रीन पर आपके इनकम टैक्स एसेसिंग ऑफिसर का पता दिखने लगेगा. इसके बाद आपको गलती सुधरवाने के लिए एओ के दफ्तर जाना होगा.
 अगर टैक्स बैंक ब्रांच के जरिए चुकाया है 
यदि एडवांस टैक्स या सेल्फ एसेसमेंट टैक्स का पेमेंट बैंक ब्रांच के जरिए किया है तो बैंक एक तय अवधि के भीतर कुछ गलतियां सही कर सकता है.

 बैंक जिन गलतियों को सही कर सकता है, वे इस तरह हैं: 
एसेसमेंट ईयर 
मेजर हेड कोड
 माइनर हेड कोड 
टैन/पैन 
कुल रकम 
पेमेंट का तरीका (टीडीएस कोड)
अन्य गलतियां केवल एसेसिंग ऑफिसर ही ठीक कर सकते हैं.
गलती सुधरवाने की प्रक्रिया क्या है?
 बैंक से गलती सुधरवाने के लिए ये स्टेप लेने होंगे:

Step 1: बैंक की उस शाखा में ओरिजनल चालान की प्रति के साथ जाएं जहां टैक्स जमा किया था.

Step 2: गलती सुधारने के लिए फॉर्म देने का अनुरोध करें. फॉर्म भरकर उसकी डुप्लीकेट कॉपी संबंधित बैंक ब्रांच में जमा कर दें.

Step 3: करेक्शन एप्लीकेशन के साथ करदाता को असली चालान की प्रति भी जमा करनी पड़ती है. चालान नंबर 280, 282 और 283 के मामले में पैन की प्रति भी लगाएं.

अगर एक से ज्यादा गलतियां है तो हर एक के लिए अलग-अलग फॉर्म लेने की जरूरत पड़ेगी.

भूल सुधार संबंधी अनुरोध जमा हो जाने के 7 दिनों के अंदर बैंक को इसे ठीक करना पड़ता है.

समयसीमा के अंदर गलती नहीं सुधारी तो क्‍या होगा? 
अगर बैंक ने जो समयसीमा तय की है, उसमें गलती नहीं सुधारी गई तो इसे दुरुस्त कराने के लिए एसेसिंग ऑफिसर से संपर्क करना होगा.

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Wednesday, September 11, 2019

इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना भूल गए तो अब ये है रास्ता

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इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की आखिरी तारीख 31 अगस्त थी। अगर आप अब तक रिटर्न फाइल नहीं कर पाए हैं तो आपके पास अभी मौका है। लेकिन अब आप रिटर्न फाइल करते हैं तो आपको जुर्माना भरना पड़ सकता है। फाइनेंस एक्ट, 2017 के तहत तय तारीख के बाद रिटर्न फाइल करने पर आपको पेनाल्टी भरनी पड़ सकती है।

देर से रिटर्न भरने की आखिरी तारीख क्या है?

अगर आप अभी तक रिटर्न फाइल नहीं कर पाए हैं तो आपके पास असेसमेंट ईयर खत्म होने से पहले या असेसमेंट पूरा होने से पहले, दोनों में जो पहले होगा उसी के आधार पर डेडलाइन तय होगी। इसका मतलब यह हुआ कि फिस्कल ईयर 2018-19 के लिए लेट रिटर्न फाइल करने की आखिरी तारीख 31 मार्च 2020 है। यानी असेसमेंट ईयर 2019-20 खत्म होने से पहले रिटर्न फाइल करना होगा।

लेट रिटर्न फाइल करने के बाद क्या रिवाइज का ऑप्शन है?

हां, आप लेट रिटर्न फाइल करने के बाद भी उसे रिवाइज करना चाहते हैं तो कर सकते हैं। फिस्कल ईयर 2016-17 से लेकर अभी तक के लेट रिटर्न को रिवाइज किया जा सकता है। लेकिन इससे पहले के रिटर्न को रिवाइज नहीं किया जा सकता क्योंकि नियम बदल गए हैं। 

कितना लगेगा जुर्माना?

अगर 31 दिसंबर 2019 से पहले आप रिटर्न फाइल कर लेते हैं तो आपको 5000 रुपए की पेनाल्टी देनी होगी। अगर 1 जनवरी 2020 के बाद आप रिटर्न फाइल करते हैं तो आपकी पेनाल्टी बढ़कर 10,000 रुपए हो जाएगी। हालांकि अगर आपकी टैक्सेबल इनकम 5 लाख रुपए से कम है तो आपकी पेनाल्टी 1000 रुपए से ज्यादा नहीं होगी।

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Monday, September 9, 2019

इनकम टैक्स रिटर्न के बारे में ये 5 स्मार्ट बातें जानते हैं आप?

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समय-सीमा खत्म होगी
इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करने की समय-सीमा खत्म होने वाली है. तय समय से आईटीआर नहीं भरने पर आपको पेनाल्टी देनी पड़ती है. इसके लिए अलग-अलग तरह के फॉर्म होते हैं. आइए, यहां इससे जुड़ी और बातों को देखते हैं.
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आईटीआर के लिए फॉर्म
इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) टैक्स फॉर्म होता है. करदाता इसका इस्तेमाल करते हैं. इसमें वे बताते हैं कि उन्होंने किसी वित्त वर्ष में कितनी कमाई की. उनकी इस कमाई पर आयकर विभाग टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स काटता है.
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सरकार को देते हैं जानकारी
इनकम टैक्स रिटर्न में आपको आमदनी, बचत, खर्च आदि का विवरण देना होता है. आईटीआर फॉर्म कई तरह के होते हैं. किस फॉर्म को चुनना है, यह कई बातों पर निर्भर करता है. इनमें करदाता की इनकम का स्रोत, इनकम और वह कैटेगरी शामिल है जिसमें करदाता आता है.

कितने तरह के itr फॉर्म?
अब तक आयकर विभाग ने 7 फॉर्म अधिसूचित किए हैं. इनमें ITR 1, ITR 2, ITR 3, ITR 4, ITR 5, ITR 6 और ITR 7 शामिल हैं. आपको हर साल पहले से तय तारीख के अंदर इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की जरूरत पड़ती है.
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किसके लिए है ITR-1?
ITR1 का इस्तेमाल काफी ज्यादा होता है. इसे नौकरीपेशा लोग भरते हैं. उन्हीं को यह फॉर्म भरना चाहिए जिनकी एक प्रॉपर्टी है और कुल इनकम 50 लाख रुपये से ज्यादा नहीं है.
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ITR फाइल करने में देरी पर जुर्माना
अगर आप पर टैक्स देनदारी है तो आईटीआर समय से फाइल न करने पर पेनाल्टी लगती है. पेनाल्टी की रकम इनकम और रिटर्न भरने में हुई देरी पर निर्भर करती है.

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Wednesday, September 4, 2019

इनकम टैक्स कानून में ये 7 बदलाव 1 सितंबर से हो गए लागू

एक सितंबर से कॉन्ट्रैक्टर और पेशेवरों को 50 लाख रुपये (सालाना) से ज्यादा किए गए भुगतान पर 5 फीसदी की दर से टैक्स टीडीएस काटना होगा.
इनकम टैक्स
एक साल के दौरान बैंक, को-ऑपरेटिव बैंक या  पोस्ट
 ऑफिस में खाते से एक करोड़ रुपये सेज्यादा निकालते
 हैं तो सितंबर से टीडीएस वसूला जाएगा.
बजट में इनकम टैक्स से जुड़ी घोषणाएं अमूमन 1 अप्रैल से लागू होती हैं. चूंकि वित्त वर्ष 2019-20 का पूर्ण बजट इस साल आम चुनाव के बाद जुलाई में पेश हुआ. लिहाजा, कई टैक्स बदलाव एक सितंबर 2019 से लागू होंगे. यहां हम टैक्स में कुछ प्रमुख बदलावों के बारे में बता रहे हैं जो रविवार से प्रभावी होंगे.


एक सितंबर से अगर आप कोई प्रॉपर्टी खरीदते हैं तो टीडीएस काटने के लिए आपको थोड़ी ज्यादा गणित लगानी होगी. कैलकुलेशन में आपको क्लब मेंबरशिप फीस, कार पार्किंग फीस, इलेक्ट्रिसिटी फीस जैसी अन्य सेवाओं के लिए किए जा रहे भुगतान को भी ध्यान में रखना होगा.

टैक्समैन डॉट कॉम के डीजीएम चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन वाधवा कहते हैं, "पहले खरीदार प्रॉपर्टी के लिए किए गए पेमेंट से टैक्स काट लेते थे. हालांकि, टीडीएस की रकम कैलकुलेट करने में कुल राशि से क्लब मेंबरशिप फीस इत्यादि जैसे अन्य भुगतान को घटाना पड़ता था." 


एक साल के दौरान बैंक, को-ऑपरेटिव बैंक या पोस्ट ऑफिस में खाते से एक करोड़ रुपये से ज्यादा निकालते हैं तो सितंबर से टीडीएस वसूला जाएगा. लोग बड़े मूल्य के कैश ट्रांजेक्शन न करें, इस मकसद से यह कदम उठाया गया है.


एक सितंबर से कॉन्ट्रैक्टर और पेशेवरों को 50 लाख रुपये (सालाना) से ज्यादा किए गए भुगतान पर 5 फीसदी की दर से टैक्स टीडीएस काटना होगा. इसका मतलब यह है कि अगर कोई घर की मरम्मत, शादी-ब्याह या किसी अन्य काम के लिए पेशेवर को इस सीमा से ज्यादा भुगतान करता है तो इस पर टैक्स काटना होगा.


लाइफ इंश्योरेंस के मैच्योर होने पर मिली रकम अगर टैक्सेबल है तो बजट में इनकम टैक्स से जुड़ी घोषणाएं अमूमन 1 अप्रैल से लागू होती हैं. चूंकि वित्त वर्ष 2019-20 का पूर्ण बजट इस साल आम चुनाव के बाद जुलाई में पेश हुआ. लिहाजा, कई टैक्स बदलाव एक सितंबर 2019 से लागू होंगे. यहां हम टैक्स में कुछ प्रमुख बदलावों के बारे में बता रहे हैं जो रविवार से प्रभावी होंगे.


एक सितंबर से अगर आप कोई प्रॉपर्टी खरीदते हैं तो टीडीएस काटने के लिए आपको थोड़ी ज्यादा गणित लगानी होगी. कैलकुलेशन में आपको क्लब मेंबरशिप फीस, कार पार्किंग फीस, इलेक्ट्रिसिटी फीस जैसी अन्य सेवाओं के लिए किए जा रहे भुगतान को भी ध्यान में रखना होगा.

टैक्समैन डॉट कॉम के डीजीएम चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन वाधवा कहते हैं, "पहले खरीदार प्रॉपर्टी के लिए किए गए पेमेंट से टैक्स काट लेते थे. हालांकि, टीडीएस की रकम कैलकुलेट करने में कुल राशि से क्लब मेंबरशिप फीस इत्यादि जैसे अन्य भुगतान को घटाना पड़ता था." 


कुल इनकम वाले हिस्से पर 5 फीसदी की दर से टीडीएस काटा जाएगा. कुल इनकम वाले हिस्से को कैलकुलेट करने के लिए कुल प्राप्त हुई रकम में से दिए गए इंश्योरेंस प्रीमियम को घटाया जाता है


अभी बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को एक सीमा तक किए गए ट्रांजेक्शन की जानकारी देनी पड़ती थी. यह सीमा 50,000 रुपये या इससे ज्यादा की होती थी. लेकिन, अब सरकार ने इसका दायरा बढ़ा दिया है. एक सितंबर से बैंकों को इससे कम मूल्य के ट्रांजेक्शन की भी जानकारी देनी पड़ सकती है. 



जुलाई में पेश बजट 2019 से पहले के नियमों के मुताब‍िक, एक तय समयसीमा के अंदर आधार के साथ लिंक नहीं हुए पैन अवैध हो जाते. इसका मतलब होता कि जिनके पैन अमान्य होते, उन्हें बगैर पैन के मान लिया जाता है. हालांकि, पैन का इस्तेमाल करते हुए पिछले ट्रांजेक्शन की वैधता बनाए रखने के लिए बजट 2019 में नियम बदला गया. इसमें कहा गया कि निर्धारित समयसीमा के अंदर पैन को आधार से लिंक नहीं किया गया तो यह अमान्य होने की बजाय इनऑपरेटिव हो जाएगा.


 इस्तेमाल बजट 2019 में एक और बड़ी घोषणा हुई, वह थी पैन और आधार की इंटर-चेंजिएबिलिटी यानी आपस में अदला-बदली. वाधवा ने कहा, "हालांकि, पैन के बदले आधार को कुछ तय ट्रांजेक्शन के लिए ही इस्तेमाल किया जा सकता है."

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Tax planning is the analysis of a financial situation or plan from a tax perspective. The purpose of tax planning is to ensure tax efficiency. Through tax planning, all elements of the financial plan work together in the most tax-efficient manner possible. Tax planning is an essential part of a financial plan. Reduction of tax liability and maximizing the ability to contribute to retirement plans are crucial for success.

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* Investment & Trading in securities market is always subjected to market risks, past performance is not a guarantee of future performance.

Tuesday, September 3, 2019

Objectives of Tax Planning

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  • Reduction of Tax Liability: An assessee can save the maximum amount of tax, by properly arranging his/her operations as per the requirements of the law, within the framework of the statute.
  • Minimization of Litigation: There is a war-like situation between the taxpayers and tax collectors as the former wants the tax liability to be minimum while the latter attempts to extract the maximum. So, proper tax planning aims at conforming to the provisions of the tax law, in such a way that incidence of litigation is minimized.
  • Productive Investment: One of the major objectives of tax planning is the channelization of taxable income to different investment plans. It aims at the optimum utilization of resources for productive causes and relieving the assessee from tax liability.
  • Healthy Growth of Economy: The growth and development of the economy greatly depend on the growth of its citizens. Tax planning measures involve generating white money that flows freely and results in the sound progress of the economy.
  • Economic Stability: Proper tax planning brings economic stability by various techniques such as mobilizing resources for national projects or availing ways for investments which are productive in nature.
Tax Planning follows an honest approach, to achieve maximum benefits of tax laws, by applying the script and moral of law. Therefore the objectives do not in any way contradict the concept of tax laws.

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